भाजपा की हार में मायावती का अहम किरदार: समीक्षा रिपोर्ट में टिकट वितरण में जल्दबाजी सहित अन्य कारण आए सामने

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Jul 02, 2024 17:04

भाजपा नेता स्वयं मान रहे हैं कि लोकसभा चुनाव में कई स्तर पर खामियों के कारण प्रत्याशियों को हार का सामना करना पड़ा। ब्रज, पश्चिम, कानपुर-बुंदेलखंड, अवध, काशी और गोरखपुर क्षेत्र में 2019 के मुकाबले सीटें कम हुईं हैं। 

Lucknow News: लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में भाजपा के खराब प्रदर्शन की अब तक चर्चा हो रही है। विपक्षी दल खासतौर से समाजवादी पार्टी इसे लगातार मुद्दा बना रही है। फैजाबाद लोकसभा सीट से अवधेश प्रसाद की जीत को भगवान राम का आशीर्वाद बताया जा रहा है। ऐसे में भाजपा ने अपनी हार के कारण तलाशते हुए रिपोर्ट तैयार की है। इस समीक्षा रिपोर्ट को केंद्रीय नेतृत्व की बैठक में सौंपा जाएगा, जिससे भविष्य की रणनीति तय की जा सके। 

एक लोकसभा क्षेत्र में 500 कार्यकर्ताओं से बातचीत
भाजपा ने हार के कारणों को तलाशने के लिए चुनाव हारने वाले प्रत्याशियों से लेकर अन्य पार्टी पदाधिकारियों और नेताओं-कार्यकर्ताओं से बातचीत की। प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी और प्रदेश महामंत्री (संगठन) धर्मपाल सिंह ने सिलसिलेवार क्षेत्रवार नेताओं से बातचीत की। इसके साथ ही टीमों को भी लोकसभा क्षेत्रों में भेजा गया। पार्टी नेताओं के मुताबिक 78 लोकसभा क्षेत्रों में 40 टीमों ने जाकर धरातल पर समीक्षा की। इस दौरान एक लोकसभा क्षेत्र में करीब 500 कार्यकर्ताओं से बातचीत की गई। इसमें 15 पेज की रिपोर्ट में भाजपा की हार के 12 अहम कारण सामने आए हैं। पेपर लीक, संविदा की नियुक्तियां और संविधान के मुद्दे को हार की बड़ी वजह बताया गया है।

वोट शेयर में 8 फीसदी तक गिरावट
भाजपा नेता स्वयं मान रहे हैं कि लोकसभा चुनाव में कई स्तर पर खामियों के कारण प्रत्याशियों को हार का सामना करना पड़ा। नेताओं के आत्मविश्वास से लेकर कई जगह उनका जनता से जुड़ाव नहीं होने के कारण विपक्ष को इसका सीधा फायदा मिला। सभी क्षेत्रों में भाजपा के वोटों में गिरावट दर्ज की गई हैं वोट शेयर में लगभग 8 फीसदी की गिरावट देखने को मिली है। समीक्षा रिपोर्ट के मुताबिक ब्रज, पश्चिम, कानपुर-बुंदेलखंड, अवध, काशी और गोरखपुर क्षेत्र में 2019 के मुकाबले सीटें कम हुईं हैं। 

सपा कांग्रेस को पीडीए का मिला सपोर्ट
समाजवादी पार्टी के उत्तर प्रदेश में सबसे बड़ी पार्टी बनने के पीछे पीडीए का अहम रोल रहा। पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव शुरुआत से ही पिछड़े, दलित और अल्पसंख्यक फॉर्मूले के तहत काम कर रहे थे। उन्होंने इसे बड़ा मुद्दा बनाया और लोकसभा चुनाव में सपा—कांग्रेस को इसका फायदा मिला। पीडीए ने खुलकर इन्हें वोट दिया। इसके साथ ही गैर यादव ओबीसी और गैर जाटव एससी का वोट समाजवादी पार्टी के पक्ष में बढ़ने के कारण भी भाजपा प्रत्याशियों को नुकसान हुआ। 

बसपा उम्मीदवारों ने किया नुकसान
अहम बात है कि बसपा के प्रत्याशियों ने मुस्लिम व अन्य के वोट नहीं काटे बल्कि जहां भाजपा समर्थक वर्गों के प्रत्याशी उतारे गए वहां वह वोट काटने में सफल रहे। ऐसे में भाजपा की हार में बसपा की अहम भूमिका रही। समीक्षा रिपोर्ट के मुताबिक संविधान संशोधन के बयानों ने पिछड़ी जाति को भाजपा से दूर किया। विपक्षी दल इसका लाभ लेने में नहीं चूके। इस वजह से सपा को सबसे ज्यादा 37 सीटें मिली, वहीं कांग्रेस का ग्राफ भी ऊपर गया और उसके 6 उम्मीदवार जीत हासिल करने में सफल रहे। 

हार के अहम कारण
  • प्रतियोगी परीक्षाओं में पेपर लीक का मुद्दा।
  • सरकारी विभागों में संविदा कर्मियों की भर्ती और आउटसोर्सिंग का मुद्दा।
  • संविधान संशोधन को लेकर भाजपा नेताओं की टिप्पणी। विपक्ष का 'आरक्षण हटा देंगे' का नैरेटिव बना देना।
  • भाजपा कार्यकर्ताओं में सरकारी अधिकारियों को लेकर असंतोष की भावना।
  • सरकारी अधिकारियों का भाजपा कार्यकर्ताओं को सहयोग नहीं, निचले स्तर पर पार्टी का विरोध।
  • बीएलओ के स्तर पर बड़ी संख्या में मतदाता सूची से नाम हटाए गए।
  • टिकट वितरण में जल्दबाजी के कारण भाजपा नेताओं व कार्यकर्ताओं का उत्साह कम हुआ।
  • बसपा के प्रत्याशियों ने मुस्लिम व अन्य के वोट नहीं काटे बल्कि जहां भाजपा समर्थक वर्गों के प्रत्याशी उतारे गए, वहां वे वोट काटने में सफल रहे।
  • क्षत्रिय मतदाता भाजपा से दूर चले गए। 
  • प्रदेश सरकार में थाने और तहसीलों को लेकर कार्यकर्ताओं में नाराजगी।
  • पिछड़ों में कुर्मी, कुशवाहा, शाक्य का भी झुकाव नहीं रहा। 
  • अनुसूचित जातियों में पासी व वाल्मीकि मतदाता का झुकाव सपा-कांग्रेस की ओर चला गया। 

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