हाल-ए-स्मृति ईरानी : राहुल-राहुल रटते-रटते छूटी रे अमेठिया!

UPT | स्मृति ईरानी।

Jun 04, 2024 17:05

चुनाव परिणाम जानने के बाद लोगों की जिज्ञासा अब यह जानने में हो गई है कि अमेठी में आखिर ऐसा चमत्कार हुआ तो कैसे हुआ? इसके एक नहीं अनेक कारण माने और गिनाए जा सकते हैं। पहले तो यह कि स्मृति ईरानी को यह अंदाजा नहीं था कि राहुल गांधी अमेठी छोड़ देंगे।

Loksabha Elections (गौरव अवस्थी) : 2024 के लोकसभा चुनाव में अमेठी में आखिर वही हुआ जो होना था। भाजपा की दमदार उम्मीदवार केंद्रीय मंत्री और अमेठी की संसद स्मृति ईरानी को पराजय का स्वाद गांधी परिवार के उस करीबी किशोरी लाल शर्मा से चखना पड़ा, जिन्हें उम्मीदवार बनाए जाने के बाद उन्होंने गांधी परिवार का 'चपरासी' कहा था। उनके इस बड़बोलेपन का जवाब जनता ने ईवीएम का बटन दबा कर दिया। उन्होंने राहुल गांधी को 2019 के चुनाव में जितने वोटो से हराया था उससे दोगुनी से ज्यादा वोटों से गांधी परिवार के करीबी किशोरी लाल शर्मा ने उन्हें परास्त कर दिया।

अमेठी में आखिर कैसे हुआ चमत्कार
चुनाव परिणाम जानने के बाद लोगों की जिज्ञासा अब यह जानने में हो गई है कि अमेठी में आखिर ऐसा चमत्कार हुआ तो कैसे हुआ? इसके एक नहीं अनेक कारण माने और गिनाए जा सकते हैं। पहले तो यह कि स्मृति ईरानी को यह अंदाजा नहीं था कि राहुल गांधी अमेठी छोड़ देंगे। इसीलिए वह अमेठी में अपने काम गिनाने के बजाय 5 साल तक गांधी परिवार और खास तौर से राहुल गांधी को कोसने में ही लगी रहीं। अमेठी के लोगों में इसी से उनकी नकारात्मक छवि बनी और चुनाव आते-आते यह नकारात्मक छवि नाराजगी में तब्दील हो गई। वोटरों के इस नाराजगी को ईरानी और उनके प्रबंधक आखिर तक पहचान ही नहीं पाए। मतदान के पहले और मतदान के बाद भी ईरानी के लोगों की मनमानी जारी रही। किशोरी लाल शर्मा समेत कई लोगों पर दबाव बनाकर एफआईआर दर्ज कराई गईं। इनमें दो तो यूट्यूबर थे।

दरअसल गांधी परिवार को पढ़ने में उनसे यहीं चूक हो गई। चुनाव दर चुनाव दुर्दशा के बावजूद गांधी परिवार देश का सबसे बड़ा राजनीतिक परिवार आज भी माना ही जाता है। गांधी परिवार को हल्के में लेना स्मृति ईरानी की रणनीतिक भूल रही। गांधी परिवार ने 40 साल से रायबरेली-अमेठी के लोगों के अपने माध्यम से सेवा कर रहे किशोरी लाल शर्मा की छवि और काम को आगे करके स्मृति ईरानी को जवाब देने की रणनीति बनाई और प्रियंका गांधी ने उस रणनीति को अपने धुआंधार प्रचार से धार दी। यह नोट करने वाली बात है कि प्रियंका गांधी ने जितना समय भाई के लिए रायबरेली में दिया उतना ही समय अपने परिवार की प्रतिष्ठा से जुड़ी सीट अमेठी में पार्टी प्रत्याशी किशोरी लाल शर्मा के लिए भी दिया।

किशोरी लाल शर्मा ने केवल विकास की बात की
किशोरी लाल शर्मा ने भी अपने प्रचार के दौरान गांधी परिवार से रिश्तों और विकास की कहानी ही बताई, स्मृति ईरानी का एक बार नाम भी नहीं लिया। चुनाव में उनकी अपनी यह रणनीति कारगर रही। मतदाताओं ने उनके इस व्यवहार को पसंद भी किया। प्रियंका गांधी की एग्रेसिव कैंपेनिंग तो काम आई ही साथ ही स्मृति ईरानी की अपनी गलतियां भी उनको पराजय के द्वार तक ले जाने में मददगार बनीं। 2019 में राहुल गांधी को हराने वाली ईरानी मदमस्त हो गई। संगठन को दरकिनार करके दूसरे दलों के एक वर्ग विशेष के नेताओं को तवज्जो देना भी उनके लिए चुनाव में घातक साबित हुआ। इन बड़े स्थानीय नेताओं से घिरे रहने की वजह से अमेठी के आम लोग उनसे दूर ही होते गए। 

विजय गुप्ता का अहंकार बना स्मृति की हार का कारण
अमेठी की ग्राउंड रिपोर्टिंग के दौरान हमने यह खुद महसूस किया कि आम लोग ईरानी से केवल इसलिए नाराज थे कि वह बड़े लोगों को ही पहचानती हैं। उन्हीं के घर आती-जाती हैं और आम लोगों से उनका कोई वास्ता नहीं। उनके इसी व्यवहार ने भाजपा के कट्टर समर्थकों तक को पार्टी से दूर कर दिया। ऐसा एक बड़ा वर्ग इस बार ईरानी को सबक सिखाने के लिए ही किशोरी लाल शर्मा या कांग्रेस के पक्ष में खुद-ब -खुद चला गया। ईरानी की हार में उनके प्रतिनिधि विजय गुप्ता भी एक बड़ा कारण बने। विजय गुप्ता का अहंकार ईरानी से भी बड़ा था। अमेठी के लोग तो यह भी कहते हैं कि ईरानी उसी से बात करती थी जिसकी तरफ विजय गुप्ता इशारा करते थे। अमेठी में उनके पतन की एक अन्य वजह गैर सरकारी संगठन 'उत्थान' भी रहा। ग्राउंड रिपोर्टिंग के दौरान लोगों और दबी जुबान भाजपा कार्यकर्ताओं ने इस संगठन के बारे में भी जो बातें बताईं, वह अविश्वसनीय लगी लेकिन चुनाव परिणाम आने के बाद उन बातों पर गौर करना मजबूरी सा लग रहा है। अमेठी में यह चर्चा आम थी कि ईरानी के सरकारी और सांसद निधि के सारे काम उत्थान संस्था के मार्फत ही होते थे। अब इसमें कितनी सच्चाई है? यह पता करने वाली बात है।

5 साल तक जनता से दूर रहीं केंद्रीय मंत्री
पूरे 5 साल स्मृति ईरानी आम जनता से तो दूर रहीं ही साथ ही अमेठी की उस परंपरा को भी वह नजरअंदाज कर गईं जो गैर गांधी परिवार के उम्मीदवार के लिए घातक साबित होती रही है। यह परंपरा है गैर गांधी परिवार के उम्मीदवार को दोबारा मौका न देने की। आम जनता इस चुनाव में इस इतिहास को डंके की चोट पर इतिहास कह-सुन रही थी लेकिन स्मृति ईरानी और उनके इलेक्शन मैनेजर वह आवाज  नहीं सुन पाए। अगर जनता की इस बात को ही ईरानी के मैनेजरों ने गंभीरता से लिया होता तो परिणाम आज ऐसा न होता। अमेठी की जनता ने गैर गांधी परिवार के राजेंद्र प्रताप सिंह को 1977 कैप्टन सतीश शर्मा को 1996 संजय सिंह को 1998 और स्मृति ईरानी को 2019 में अवसर दिया। इतिहास है कि इन सभी को अमेठी की जनता ने दोबारा जीत का अवसर नहीं दिया। इनमें कैप्टन सतीश शर्मा तो कांग्रेस के ही टिकट पर जीते थे और गांधी परिवार के हनुमान का जाते थे लेकिन जनता ने उन्हें भी दोबारा आम चुनाव में अवसर नहीं दिया। 

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