Mukhtar Ansari : छात्र नेता से पॉलिटिक्स में मारी थी एंट्री, यूपी की राजनीति में ऐसे जमाया पांव, दिलचस्प है माफिया डॉन के विधायक बनने की कहानी

फ़ाइल फोटो | मुख्तार अंसारी।

Mar 28, 2024 23:58

30 जून 1963 को यूपी के गाजीपुर के यूसुफपुर में सुभानउल्लाह अंसारी के घर एक लड़के का जन्म हुआ। परिजनों ने उसका नाम मुख्तार अंसारी रखा। घरवालों ने शायद ही सोचा हो कि ये लड़का आने वाले वक्त में यूपी में खौफ का पर्याय बन जाएगा।

Mukhtar Ansari Political Career : बांदा जेल में बंद माफिया डॉन मुख्तार अंसारी का बृहस्पतिवार को निधन हो गया। जेल में तबीयत बिगड़ने के बाद गंभीर हालत में उन्हें दुर्गावती मेडिकल कॉलेज लाया गया था। जहां इलाज के दौरान उनकी मौत हो गई। मुख्तार अंसारी ने जुर्म की दुनिया में बहुत कम उम्र में ही कदम रख दी थी। जुर्म की दुनिया में कदम रखने के बाद उसने राजनीति में एंट्री की। 

जुर्म की दुनिया से कैसे की राजनीति में एंट्री
30 जून 1963 को यूपी के गाजीपुर के यूसुफपुर में सुभानउल्लाह अंसारी के घर एक लड़के का जन्म हुआ। परिजनों ने उसका नाम मुख्तार अंसारी रखा। घरवालों ने शायद ही सोचा हो कि ये लड़का आने वाले वक्त में यूपी में खौफ का पर्याय बन जाएगा। लोग उसके नाम से कांपेंगे और लोग उसे देखते ही सड़कों से भागकर अपने घरों में छिप जाएंगे। 1990 तक मुख्तार अंसारी गुनाह की दुनिया में बड़ा नाम बन चुका था। खासकर गाजीपुर, वाराणसी, मऊ और जौनपुर में तो उसका आतंक चरम पर था। इसके बाद साल 1995 में मुख्तार ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) में छात्र संघ के जरिए राजनीति में एंट्री ली और वह 1996 में विधायक बन गया। मुख्तार अंसारी साल 1997 से लेकर 2022 तक लगातार मऊ विधानसभा का प्रतिनिधित्व किया है।  

1995 में थाम लिया था बसपा का दामन
बाहुबली मुख्तार अंसारी ने साल 1995 में बहुजन समाज पार्टी (‌BSP) का दामन थाम लिया था। बसपा में शामिल होने के बाद मुख्तार ने 1996 में घोसी लोकसभा सीट से कांग्रेस नेता कल्पनाथ राय के खिलाफ ताल ठोका, लेकिन वह असफल रहा। इसके बाद बसपा ने उन्हें मऊ विधानसभा से टिकट दिया और अंसारी ने जीत हासिल की। 

दो बार निर्दलीय विधायक रहा
बाद में बसपा ने निकाले जाने के बाद मुख्तार अंसारी ने साल 2002 के मऊ से निर्दलीय विधानसभा का चुनाव लड़कर जीत हासिल की। 2002 के बाद मुख्तार ने एक बार फिर 2007 में मऊ विधानसभा से निर्दलीय जीत दर्ज की। इसके बाद लोकसभा चुनाव 2009 से पहले मुख्तार अंसारी अपने भाई अफजाल अंसारी के साथ एक बार फिर बसपा में शामिल हो गया। मुख्तार ने बसपा की टिकट पर वाराणसी लोकसभा सीट से चुनाव भी लड़ा, लेकिन हार का सामना करना पड़ा। इसके बाद मायावती ने उन्हें और उनके भाई को साल 2010 में पार्टी से निष्कासित कर दिया।

2010 में की कौमी एकता दल की स्थापना
साल 2010 में बसपा ने निकाले जाने के बाद मुख्तार ने कौमी एकता दल की स्थापना की और 2012 के विधानसभा चुनावों में मऊ और मोहम्मदाबाद सीट से जीत दर्ज की। इसके बाद 2017 में मुख्तार ने अपनी पार्टी का समाजवादी पार्टी में विलय किया, लेकिन बाद में सपा के मुखिया अखिलेश यादव ने विलय को रद्द कर दिया। जनवरी 2017 में उनकी पार्टी का बसपा में विलय हुआ और फिर मायावती ने जेल में बंद मुख्तार अंसारी को मऊ से उम्मीदवार बनाकर मैदान में उतारा। जेल में बंद रहने के बाद भी मुख्तार ने जीत दर्ज की।

इतने सालों से जेल में था मुख्तार
माफिया मुख्तार अंसारी की उम्र जेल के सलाखों के पीछे ही बीत रही है। वह साढ़े 18 वर्षों से जेल में है। मऊ दंगे के बाद मुख्तार अंसारी ने 25 अक्तूबर 2005 को गाजीपुर में आत्म समर्पण किया था और वहीं की जिला जेल में दाखिल हुआ था। मुख्तार जब से जेल में बंद है, तब से लेकर अब तक उस पर गंभीर धाराओं में मुकदमे दर्ज हुए हैं। पूर्वांचल में कभी जिस मुख्तार अंसारी के इशारे पर सरकारें अपना निर्णय बदल लेती थी, आज उसी मुख्तार का बना बनाया हुआ साम्राज्य ढह रहा है। ये सिलसिला बीते छह-सात वर्षों में तेज हुआ है।

रोपड़ जेल से यूपी लाया गया था मुख्तार
एक मामले की सुनवाई के लिए मुख्तार अंसारी को यूपी की बांदा जेल से पंजाब की रोपड़ जेल भेजा गया था। इसके बाद वो लंबे समय तक वहीं था. यूपी में बीजेपी सरकार बन जाने के बाद मुख्तार वापस नहीं आना चाहता था। उसे यूपी लाए जाने के लिए दोनों राज्यों की सरकारों के बीच खींचतान चली. मामला सुप्रीम कोर्ट तक जा पहुंचा। सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के बाद उसे यूपी शिफ्ट करने का फरमान सुनाया। इसके बाद 7 अप्रैल 2021 को सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भारी सुरक्षा इंतजामों के बीच बाहुबली मुख्तार अंसारी को पंजाब के रोपड़ से हरियाणा के रास्ते आगरा, इटावा और औरैया होते हुए बांदा जेल पहुंचा दिया गया था। 

 

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