इलाहाबाद उच्च न्यायालय का फैसला : पत्नी की हत्या के मामले में पति बरी, ट्रायल कोर्ट ने सुनाई थी उम्रकैद की सजा

UPT | इलाहाबाद उच्च न्यायालय का फैसला

Aug 21, 2024 02:49

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पत्नी की हत्या के मामले में उम्रकैद की सजा काट रहे पति को बेगुनाह करार दिया है। ट्रायल कोर्ट से मिली आजीवन कारावास और सात हजार रुपये जुर्माने की सजा रद्द कर दी…

Prayagraj News : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पत्नी की हत्या के मामले में आजीवन कारावास की सजा काट रहे पति को बेगुनाह करार देते हुए सभी आरोपों से बरी कर दिया है। कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट द्वारा दी गई उम्रकैद और 7,000 रुपये के जुर्माने की सजा को रद्द कर दिया। यह फैसला न्यायमूर्ति सिद्धार्थ और न्यायमूर्ति बृजराज सिंह की खंडपीठ ने आरोपी की अपील पर सुनाया।

पिता ने बेटी को जलाकर मार डालने का लगाया था आरोप
मामला कौशाम्बी के चरवा थाना क्षेत्र का है, जहां दिनेश तिवारी की पत्नी पूनम की 5 अगस्त 2011 को संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई थी। पूनम के पिता लक्ष्मी नारायण मिश्र ने अपने दामाद दिनेश तिवारी और उसके माता-पिता के खिलाफ बेटी की हत्या की एफआईआर दर्ज कराई थी। आरोप लगाया गया था कि 21 हजार रुपये, सोने की जंजीर और एक भैंस की मांग पूरी न होने पर उनकी बेटी को जलाकर मार डाला गया। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में गला दबाकर हत्या की पुष्टि होने पर, आठ दिन बाद दूसरी एफआईआर दर्ज कराई गई।

सास-ससुर पहले ही बरी हो चुके 
ट्रायल कोर्ट में पेश हुए आरोप पत्र के आधार पर, 19 अक्टूबर 2013 को फैसला सुनाया गया, जिसमें सास-ससुर को बरी कर दिया गया, लेकिन पति दिनेश तिवारी को उम्रकैद और जुर्माने की सजा सुनाई गई। दिनेश तिवारी ने इस फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जिसमें उन्होंने अपनी निर्दोषता की दलील दी। उन्होंने कहा कि घटना के दिन वह अपने माता-पिता के साथ वैष्णो देवी के दर्शन करने गया था और दिल्ली से प्रयागराज तक की यात्रा का प्रमाण भी प्रस्तुत किया।

महिला को जलाकर मारने का आरोप लगाया गया था 
हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि ट्रायल कोर्ट ने आरोपी पति द्वारा पेश किए गए ट्रेन टिकट को नजरअंदाज किया, जबकि उसी आधार पर सास-ससुर को बरी किया गया था। साथ ही, कोर्ट ने एफआईआर में विरोधाभास पर भी ध्यान दिया। पहले एफआईआर में महिला को जलाकर मारने का आरोप लगाया गया था, जबकि पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने के बाद गला दबाकर हत्या की एफआईआर दर्ज कराई गई,जो संदेहास्पद थी। हाईकोर्ट ने इन सभी तथ्यों को ध्यान में रखते हुए ट्रायल कोर्ट के फैसले को पलट दिया और दिनेश तिवारी को बरी कर दिया, जो पिछले 13 साल से जेल में बंद थे। इस फैसले के बाद, न्याय की उम्मीद लिए बैठे कई परिवारों के लिए यह एक महत्वपूर्ण मिसाल साबित हो सकता है। 

Also Read