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Varanasi: क्या है ज्ञानवापी मस्जिद का इतिहास, जानिए

Uttarpradesh Times | Gyanvapi Mosque

Dec 20, 2023 17:07

अगर हम वाराणसी की बात करें और ज्ञानवापी बीच में न आए ऐसा कहां हो सकता हैं। ज्ञानवापी दो शब्दों यानी ज्ञान+वापी से मिलकर बना है। जिसका अर्थ है ज्ञान का तालाब। बता दे कि वाराणसी में जिसें ज्ञानवापी मस्जिद कहा जा रहा है उस परिसर के अंदर एक कुआं है जिसे लोग ज्ञानवापी कहते हैं।

Gyanvapi Mosque: अगर हम वाराणसी की बात करें और ज्ञानवापी बीच में न आए ऐसा कहां हो सकता हैं। ज्ञानवापी दो शब्दों यानी ज्ञान+वापी से मिलकर बना है। जिसका अर्थ है ज्ञान का तालाब। बता दे कि वाराणसी में जिसें ज्ञानवापी मस्जिद कहा जा रहा है उस परिसर के अंदर एक कुआं है जिसे लोग ज्ञानवापी कहते हैं। इसी को ज्ञान का तालाब माना जाता हैं।। आखिर इसे ही ज्ञान का तालाब या ज्ञानवापी क्यों कहा जाता हैं...दरअसल इसकी एक अलग कहानी है। ज्ञानवापी मस्जिद और नए विश्वनाथ मंदिर के बीच एक कुआं है, जो मात्र 10 फीट गहरा हैं, लोगों के अनुसार यह ही ज्ञानवापी है। 

स्कंद पुराण के अनुसार ऐसा कहा जाता हे कि, भगवान शिव ने अपने त्रिशूल से लिंग अभिषेक करने के लिए इस कुएं को बनाया था। जिसके लिए ऐसी मान्यता है कि इस कुएं का जल बहुत ही पवित्र है और इसे पीने से ज्ञान की प्राप्ति होती है। ज्ञानवापी का जल काशी विश्वनाथ को चढ़ाया जाता था।

जानिए इसका इतिहास

1194 में विश्वनाथ मंदिर को मुहम्मद गोरी ने लूट कर ध्वस्त कर दिया था। इसके बाद 1669 में औरंगजेब ने फिर काशी विश्वनाथ मंदिर को ध्वस्त किया। जिसमें ऐसा दावा किया जाता हैं कि जब औरंगजेब ने मंदिर तोड़ा तो उसके ढांचे के ऊपर मस्जिद बनवा दी, और इस मस्जिद का पिछला हिस्सा मंदिर की तरह लगता है। इसके बाद सन 1780 में इंदौर की महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने मंदिर को पुनर्निर्माण कराया था।

इस मस्जिद को लेकर कुछ इतिहासकारों का यह भी कहना है कि काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद दोनों का निर्माण अकबर ने कराया था, यह निर्माण अकबर ने दीन-ए-इलाही प्रणाली को आगे बढ़ाने के लिए कराया था। 1582 ई. में अकबर द्वारा दीन-ए-इलाही की शुरूआत की गई थी, यह धार्मिक मान्यताओं की एक प्रणाली थी। इसके पीछे का विचार इस्लाम और हिंदू धर्म को एक आस्था में मिलाना था। ज्ञानवापी मस्जिद की प्रभारी अंजुमन इंतजामिया मस्जिद कमेटी इस सिद्धांत को बनाए रखती है। 

ज्ञानवापी का सच इतिहास के पन्नों में दर्ज है, जो इस बात की गवाही देता हैं कि किस तरह इस तीर्थ स्थली को कई बार क्षतिग्रस्त किया गया हैं। 1194 से 1669 के बीच कई बार इसे तोड़ा गया हैं। जिसका उल्लेख काशी हिंदू विश्वविद्यालय व पटना विश्वविद्यालय में प्राध्यापक रहे डा. अनंत सदाशिव अल्तेकर की पुस्तक हिस्ट्री आफ बनारस में बताया गया है। इसे ज्ञानवापी मामले में संदर्भ के तौर पर पेश किया जा चुका है। इसमें मुस्लिम आक्रांताओं द्वारा हिंदुओं के धार्मिक स्थलों को तहस-नहस करने का विवरण भी दर्ज है। 

1991 में हुआ पहला मुकदमा

पहली बार ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर 1991 में मुकदमा किया गया था, जिसें वाराणसी की अदालत में दाखिल किया गया था। बता दे इस याचिका में ज्ञानवापी में पूजा करने की अनुमति मांगी गई थी। इस मामले में सोमनाथ व्यास, रामरंग शर्मा और हरिहर पांडेय याचिकाकर्ता थे। केंद्र सरकार ने 1991 में ही प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट भी बनाया था। इस कानून के अनुसार, आजादी के बाद इतिहासिक और पौराणिक स्थलों को बरकरार रखने का विधान है। मस्जिद कमेटी ने इसी कानून का हवाला देते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट में सोमनाथ व्यास, रामरंग शर्मा और हरिहर पांडेय की याचिका को चुनौती दी थी।

इलाहाबाद हाई कोर्ट में दी गई याचिका के बाद हाई कोर्ट ने 1993 में विवादित जगह को लेकर स्टे लगा दिया और यथास्थिति कायम रखने का आदेश दिया था। इसके बाद 2019 में इस मामले को लेकर वाराणसी कोर्ट में फिर सुनवाई हुई। 18 अगस्त 2021 को राखी सिंह, लक्ष्मी देवी, सीता साहू, मंजू व्यास और रेखा पाठक ने ज्ञानवापी परिसर में श्रृंगार गौरी की पूजा-दर्शन की मांग करते हुए अदालत में याचिका दायर की। 

आजादी से पहले का हाल

इस मामले को लेकर ऐसा बताया जाता है कि ज्ञानवापी को लेकर आजादी से पहले भी कई बार विवाद हुए थे। एक विवाद मस्जिद परिसर के बाहर मंदिर के क्षेत्र में नमाज पढ़ने का भी था। 1809 में विवाद को लेकर सांप्रदायिक दंगा भड़क गया था। 1991 के बाद ज्ञानवापी मस्जिद के चारों तरफ लोहे की बाड़ बना दिया गया था।  

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