देवरिया से खास खबर : पढ़ाई में दूरी बनी बांधा तो मंशा यादव ने गांव में ही खोल ली डिजिटल लाइब्रेरी

UPT | डिजिटल लाइब्रेरी

Jul 11, 2024 21:23

कहते हैं न ठोकरें इंसान को चलना सीखा देती हैं। कुछ ऐसा ही हुआ 21 वर्षीय मंशा यादव के साथ। खुद की पढ़ाई में दूरी बाधा बनीं तो मंशा ने आसपास के गांव की छात्राओं की शिक्षा की राह...

Short Highlights
  • बुधवार को मुसैला में अपनी दादी से कराया डिजिटल लाइब्रेरी के शुभारंभ
  • जागृति संस्था ने बढ़ाया मदद का हाथ, उपलब्ध कराए उपकरण, सालभर देगी मार्गदर्शन
Deoria News : कहते हैं न ठोकरें इंसान को चलना सीखा देती हैं। कुछ ऐसा ही हुआ 21 वर्षीय मंशा यादव के साथ। खुद की पढ़ाई में दूरी बाधा बनीं तो मंशा ने आसपास के गांव की छात्राओं की शिक्षा की राह आसान करने का बीड़ा उठा लिया। एक साल की मेहनत के बाद आखिरकार बुधवार को उसका सपना पूरा हो गया। उसने गांव के निकट डिजिटल लाइब्रेरी का शुभारंभ किया। यहां एक साथ 52 छात्र-छात्रा पढ़ाई कर सकते हैं। जिसकी सराहना चहुंओर हो रही है। 

मंशा की यह पहल समाज के लिए प्रेरणादायक
बुधवार को भलुअनी ब्लाक के मुसैला चौराहे पर हुए डिजिटल लाइब्रेरी के शुभारंभ के अवसर पर आसपास के गांवों से छात्र-छात्राएं, महिलाएं व संभ्रांत लोग पहुंचे। मंशा के हौसले का समर्थन करने व जरूरी सहयोग प्रदान करने के लिए जागृति की टीम भी पहुंची थी। बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन के सहयोग से चल रहे टेक शक्ति प्रोजेक्ट की मैनेजर शिल्पी सिंह ने कहा कि मंशा की यह पहल समाज के लिए प्रेरणादायक है। ग्रामीण इलाके में डिजिटल लाइब्रेरी खोलकर मंशा ने खुद को स्वावलंबी बनाने के साथ आसपास के गांव के छात्र-छात्राओं को आधुनिक शिक्षा पद्धति से जोड़ने का कार्य किया है। 

जागृति संस्था ने बढ़ाया मदद का हाथ
शिल्पी सिंह ने कहा कि आमतौर पर ऐसी सुविधाएं बड़े शहरों में ही मिला करती हैं। मंशा की मेहनत और लगन को देखते हुए हमारी संस्था जरूरी उपकरण मुहैया कराने के साथ मार्गदर्शन प्रदान कर रही है। जिससे आने वाले समय में इस लाइब्रेरी को और विस्तृत बनाया जा सके। इस दौरान उद्यम कोर दर्पण, कंटेंट रायटर बैकुंठनाथ शुक्ल, डिजिटल उद्यम मित्र अंबिकेश चौबे, सद्दाम हुसैन, ग्राम प्रधान समेत तमाम गणमान्य मौजूद रहे।

4.80 लाख के निवेश से बनाया डिजिटल लाइब्रेरी
भलुअनी ब्लाक के खिरसर गांव की रहने वाली मंशा यादव बताती हैं कि इसी साल मेरी स्नातक की पढ़ाई पूरी हुई है। मेरा सपना था कि मैं पढ़-लिखकर पीसीएस बनूं। इसके लिए मैं खुखूंदू स्थित एक लाइब्रेरी में जाती थी। ऑटो या बस समय पर नहीं मिलने से आने-जाने में देर होती थी। बरसात या ठंड के दिनों में मैं लाइब्रेरी नहीं जा पाती थी। जिसके कारण मेरी पढ़ाई प्रभावित होती थी। तभी मैंने ठान लिया कि यह परेशानी अन्य छात्राओं को नहीं होने दूंगी। मैं और मेरे भाई अनिल ने मिलकर डिजिटल लाइब्रेरी का प्रोजेक्ट तैयार किया। पिता जी ने आर्थिक सहयोग के लिए हामी भर दी। आज मेरा सपना साकार हो गया।

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