दो बार भाजपा छोड़ी, सपा से बढ़ाई नजदीकियां : वाजपेयी का अपमान किया, मिलने के लिए मोदी को इंतजार कराया.... पढ़िए कल्याण सिंह के अनसुने किस्से

UPT | कल्याण सिंह के अनसुने किस्से

Aug 21, 2024 15:11

कल्याण सिंह ने अपनी राजनीति की शुरुआत एक प्रखर हिन्दूवादी नेता के रूप में की थी, जब उत्तर प्रदेश और पूरे देश में कांग्रेस पार्टी का वर्चस्व था। जनसंघ से जनता पार्टी और फिर भारतीय जनता पार्टी तक का उनका राजनीतिक सफर विशेष रहा।

Short Highlights
  • राम मंदिर आंदोलन में थी अहम भूमिका
  • मोदी से मुलाकात में किया वाजपेयी का अपमान
  • 2014 में बने राजस्थान के राज्यपाल
New Delhi : कल्याण सिंह ने अपनी राजनीति की शुरुआत एक प्रखर हिन्दूवादी नेता के रूप में की थी, जब उत्तर प्रदेश और पूरे देश में कांग्रेस पार्टी का वर्चस्व था। जनसंघ से जनता पार्टी और फिर भारतीय जनता पार्टी तक का उनका राजनीतिक सफर विशेष रहा। वे विधायक और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने, लेकिन उनकी हिन्दूवादी छवि धीरे-धीरे धूमिल होती गई। उनके राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं ने उनकी छवि को प्रभावित किया और उनके राजनीतिक करियर के असमय ढलान का कारण भी बनी। यह परिवर्तन उनके राजनीतिक और सामाजिक प्रभाव पर गहरा असर डालने वाला था। आज कल्याण सिंह की पुण्यतिथि पर पढ़िए उनके जीवन के कई अनसुने किस्से...

RSS से प्रदेश के सीएम बनने का सफर
कल्याण सिंह का जन्म 5 जनवरी 1935 को अलीगढ़ ज़िले की अतरौली तहसील के मढ़ौली गाँव में एक साधारण किसान परिवार में हुआ। बचपन में ही वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) से जुड़े और उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद अध्यापक के रूप में कार्यरत रहे। इसके साथ ही उन्होंने राजनीति में सक्रिय भागीदारी भी जारी रखी। 1967 में जनसंघ के टिकट पर अतरौली सीट से विधानसभा में पहुंचे और 1980 तक लगातार चुनाव जीतते रहे। इस बीच, जनसंघ का जनता पार्टी में विलय हो गया और 1977 में उत्तर प्रदेश में जनता पार्टी की सरकार बनने पर उन्हें राज्य का स्वास्थ्य मंत्री बनाया गया।

राम मंदिर आंदोलन में अहम भूमिका
नब्बे के दशक की शुरुआत में भारत में मण्डल आयोग की सिफारिशों और अयोध्या में राम मंदिर आंदोलन के बीच एक उथल-पुथल का दौर था। 30 अक्टूबर 1990 को, मुलायम सिंह यादव के मुख्यमंत्री रहते हुए, अयोध्या में कारसेवकों पर गोलीबारी की घटना हुई, जिसमें कई कारसेवक मारे गए। भाजपा ने इस स्थिति का सामना करने के लिए कल्याण सिंह को आगे किया, जिन्होंने महज एक साल में पार्टी को 1991 में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने की स्थिति में ला दिया। मुख्यमंत्री बनने के बाद, कल्याण सिंह ने अयोध्या का दौरा किया और राम मंदिर निर्माण के लिए शपथ ली।

भाजपा से दूरी के बाद राजनैतिक पतन
वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ कलहंस के अनुसार, बाद में कल्याण सिंह ने भाजपा और राम मंदिर मुद्दे से नाता तोड़ लिया, जिससे उनकी हिन्दूवादी नेता की छवि प्रभावित हुई। वे कहते हैं कि यदि कल्याण सिंह ने भाजपा और राम मंदिर मुद्दे को नहीं छोड़ा होता, तो वे आज पार्टी के प्रमुख नेताओं में गिने जाते। उनके दल-बदल के चलते भाजपा को सत्ता में आने के लिए लगभग डेढ़ दशक का इंतजार करना पड़ा और खुद कल्याण सिंह लोध समुदाय के नेता बनकर रह गए।

मोदी से मुलाकात में वाजपेयी का अपमान
भाजपा के कई नेताओं और पत्रकारों का मानना है कि कल्याण सिंह के राजनीतिक ढलान का एक कारण पार्टी की एक नेता कुसुम राय भी थीं, जिन्होंने समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय क्रांति पार्टी की मिलीजुली सरकार में कैबिनेट मंत्री के रूप में कार्य किया। नरेंद्र मोदी, जो उस समय संघ के प्रचारक थे, को कल्याण सिंह ने मिलने के लिए घंटों इंतजार कराया। कल्याण सिंह से मुलाकात के दौरान जब नरेंद्र मोदी ने कुसुम राय के मुद्दे को उठाया, लेकिन कल्याण सिंह ने उसे अनमने ढंग से लिया और वाजपेयी के खिलाफ अपमानजनक भाषा का प्रयोग किया।

वाजपेयी ने ही कराई पार्टी में फिर एंट्री
2004 में, कल्याण सिंह की भाजपा में वापसी अटल बिहारी वाजपेयी की कोशिशों के कारण संभव हुई। पार्टी ने 2007 के विधानसभा चुनाव उनके नेतृत्व में लड़ा, लेकिन कोई उल्लेखनीय सफलता नहीं मिली। सिद्धार्थ कलहंस के अनुसार, भाजपा छोड़ने के बाद कल्याण सिंह अवसाद की स्थिति में चले गए थे और पार्टी के बहुत कम लोग ही उनके साथ बने रहे। 2009 में कल्याण सिंह एक बार फिर से नाराज होकर भाजपा से बाहर चले गए और सपा ने नजदीकी बढ़ा ली। सपा की मदद से उन्होंने एटा ने निर्दलीय लोकसभा का चुनाव भी जीता।

2014 में बने राजस्थान के राज्यपाल
कल्याण सिंह ने 5 जनवरी 2010 को अपने 77वें जन्मदिन पर जन क्रांति पार्टी का गठन किया और अपने बेटे राजबीर सिंह को पार्टी का अध्यक्ष बनाया। पार्टी ने 2012 में विधानसभा चुनाव लड़ा, लेकिन कोई खास सफलता प्राप्त नहीं की। 2013 में, कल्याण सिंह ने एक बार फिर भाजपा में शामिल होकर 2014 के लोकसभा चुनाव में पार्टी के पक्ष में प्रचार किया। उन्हें 2014 में राजस्थान का राज्यपाल बनाया गया और कार्यकाल समाप्त होने के बाद, उन्होंने एक बार फिर भाजपा की सदस्यता ली, हालांकि पार्टी ने उन्हें कोई महत्वपूर्ण जिम्मेदारी नहीं दी।

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