Meerut News : 'वहादत अल-वुजूद' की अवधारणा पर टिके सूफीवाद पर भारतीय शास्त्रीय संगीत का प्रभाव

UPT |

May 21, 2024 15:02

सूफी संतों और उनकी शिक्षाओं को भारत में विभिन्न धर्मों के लोगों द्वारा व्यापक रूप से स्वीकार और सम्मानित किया गया है। मुस्लिम सूफी दरगाह (मकबरे) विभिन्न धर्मों के लोगों के लिए महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल...

Short Highlights
  • सूफीवाद एक रहस्यमयी और तपस्वी परंपरा में एक
  • सूफियों ने बताया इस्लाम और हिंदू प्रथाओं का समिश्रण
  • सूफी का अल्लाह और ईश्वर से सीधा संबंध 
Meerut News : सूफीवाद इस्लाम से संबंधित एक रहस्यमयी और तपस्वी परंपरा है। जिसने भारत में समधर्मी संस्कृति को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। सूफीवाद व्यक्तिगत आध्यात्मिक विकास पर जोर देता है और केवल धार्मिक नियमों और कानूनों पर निर्भर रहने के बजाय अल्लाह से सीधे संबंध पर ध्यान केंद्रित करता है। ये बातें बाले मिया की मजार में आयोजित सूफियों की एक बैठक में मोहम्मद सलीम ने कही। 

व्यक्तिगत आध्यात्मिक अनुभव ने इस्लाम और हिंदू आध्यात्मिक
इस दौरान उन्होंने कहा कि व्यक्तिगत आध्यात्मिक अनुभव ने इस्लाम और हिंदू आध्यात्मिक प्रथाओं का सम्मिश्रण करके समधर्मी संस्कृति का ईजाद किया है। सूफ़ीवाद द्वारा विकसित एक महत्वपूर्ण तत्व है ‘वहादत अल-वुजूद’ जो इस अवधारणा पर ज़ोर देता है की ईश्वर और दुनिया के बीच कोई वास्तविक अलगाव नहीं है। ये सभी लोग और चीज़ें एक ईश्वरीय वास्तविकता की अभिव्यक्ति हैं। इस धारणा ने समन्वयवाद को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इस समझ ने विभिन्न धर्मों के लोगों के बीच एकता और स्वीकृति की एक मजबूत भावना को जन्म दिया है जिससे लोगों में सहिष्णुता और पारस्परिक सम्मान की भावना का उद्गम हुआ है।

सूफी सुलेमान ने कहा कि सूफी संतों और उनकी शिक्षाओं को
सूफी सुलेमान ने कहा कि सूफी संतों और उनकी शिक्षाओं को भारत में विभिन्न धर्मों के लोगों द्वारा व्यापक रूप से स्वीकार और सम्मानित किया गया है। मुस्लिम सूफी दरगाह (मकबरे) विभिन्न धर्मों के लोगों के लिए महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल बन गए हैं। सूफी संतों की वार्षिक पुण्यतिथि सभी धार्मिक पृष्ठभूमि के लोगों द्वारा मनाई जाती है। इस दौरान सभी लोग भक्ति गायन में भाग लेने के लिए एक साथ आते हैं और प्रार्थना करते हैं जिससे एकता की प्रवृत्ति उत्पन्न होती है। सूफ़ीवाद का भारतीय शास्त्रीय संगीत की प्रगति पर भी काफ़ी प्रभाव है जो मुस्लिम सूफ़ी के भक्ति संगीत, क़व्वाली, में देखा जा सकता है।

एक-दूसरे की संस्कृति और प्रथाओं को शामिल करने का आग्रह
सूफी संतों ने अक्सर विभिन्न धर्मों के लोगों से एक-दूसरे की संस्कृति और प्रथाओं को शामिल करने का आग्रह किया है ताकि नफरत और पूर्वाग्रह को खत्म किया जा सके। सूफ़ीवाद ने आध्यात्मिक अभिव्यक्ति के साधन के रूप में संगीत और काव्य के उपयोग के माध्यम से भारत में समन्वयवाद को बढ़ावा दिया। सूफी संगीतकारों और कवियों ने अक्सर स्थानीय भाषाओं और संगीत शैलियों का इस्तेमाल किया है जिसने विभिन्न धार्मिक समुदायों के बीच विभाजन को पाटने में मदद की है। सूफ़ी तीर्थस्थान और त्योहार विभिन्न धर्मों के लोगों के मिलन के लिये महत्वपूर्ण रहे हैं जिससे लोगों में सद्भाव और भाईचारे की भावना पनपी है। सूफी संतों और नेताओं का विभिन्न धर्मों के लोगों द्वारा सम्मान किया जाता है और उनके तीर्थ स्थान सभी पृष्ठभूमि के लोगों के लिए महत्वपूर्ण बन गए हैं।

सामाजिक-राजनीतिक परिस्थितियों के साथ, बहिष्करणकारी ताकतों
उन्होंने कहा कि बदलती सामाजिक-राजनीतिक परिस्थितियों के साथ, बहिष्करणकारी ताकतों ने दरगाह और सूफी संतों की शांतिपूर्ण छवि को खराब करना शुरू कर दिया है। इन ताक़तों ने अक्सर सूफियों के हाथों से दरगाहों का प्रबंधन छीनने की कोशिश की है। यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि ऐसी गतिविधियों को अंजाम देने वाले संगठन या व्यक्ति गौरवशाली सूफी परम्परा के साथ अन्याय कर रहे हैं। ऐसे असमाजिक तत्व समन्वयवाद को कट्टरवाद और बहिष्कार से बदलने की कोशिश कर रहे हैं। इसलिए यह उजागर करना अनिवार्य है कि इस तरह के विभाजनकारी प्रवचन को बढ़ावा नहीं दिया जाए और भारत में समन्वयवाद के उद्भव में सूफीवाद के समृद्ध योगदान के बारे में सेमिनार और सम्मेलन आयोजित करके बढ़ते कट्टरवाद का मुकाबला किया जाए।
 

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